अन्जाने में ही
कोई बावरी सी
नजर उड़ते उड़ते
ठिठक जाये कहीं
बरसों से दिल को
सभाँला हुआ था
यूँ ही खेल में वो
छिटक जाये कहीं
मुझे क्या हुआ है
कि ऐसा लगा है
कोई राह चलते
भटक जाये कहीं
मेरी धड़कनों को
नजर उड़ते उड़ते
ठिठक जाये कहीं
बरसों से दिल को
सभाँला हुआ था
यूँ ही खेल में वो
छिटक जाये कहीं
मुझे क्या हुआ है
कि ऐसा लगा है
कोई राह चलते
भटक जाये कहीं
मेरी धड़कनों को
कोई सँभालो
जरा धीरे शीशा
चटक जाये कहीं
मेरे पर न खोलो
मुझे डर है झौंका
जरा धीरे शीशा
चटक जाये कहीं
मेरे पर न खोलो
मुझे डर है झौंका
कोई मनचला सा
पटक जाये कहीं
पटक जाये कहीं
© Kamlesh Pandey 'शजर'
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