Sunday, March 11, 2007

अहसास

किसी उम्मीद के साये
बिना देखे
बिना जाने
लगा आये
दिल

तुम
पहेली हो कोई
अनबूझ सी
अपने में ही
खोई हुई
स्वप्निल

मेरी हर रात है तेरे
ख़याल से
ख़्वाबों के

सितारों से
झिलमिल

बता
क्या नाम दूँ
उस अहसास को
उस ख्वाब को
जिसमें है तू
शामिल


अगर तुम
हमराह हो
फिर क्या मुझे
परवाह हो
मिले ना मिले
मंज़िल

मुझे
अब बस यही
है आरज़ू
है जुस्तजू
हो जाये तू
हासिल

कहानी को मेरी
अन्जाम दे
दे दे जहर
या जाम दे
आराम दे
काटिल



© Kamlesh Pandey 'शजर'

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