Sunday, March 11, 2007

अब क्या कहूँ

दिल की सतह पर छा गए
जब दर्द के बादल घुमड़,
इक ज्वार सा जजबात का
जब अचानक आया उमड़,
फिर भी न अश्क जो ढल सका,
मेरी आँख से ना निकल सका,
शबनम का क़तरा फूल पर
जम जाए ओले की तरह,
हुई आँख जब ये दहक कर
के लाल शोले की तरह,
फिर भी न वो जो पिघल सका,
जो न जल सका, न निकल सका,
वो आज तेरे सामने बिन बात यूँ ही बह गया,
पूरी कहानी कह गया,

अब क्या कहूँ क्या रह गया,

सागर की रेती की चुभन
को मौन रह कर झेलती,
सीपी सी मेरी आँख
टूटे ख्वाब से थी खेलती,
और वक्त के साँचे मे यों
मोती ये कैसा ढल गया,
मेरी उम्र भर की तलाश का,
तेरी प्रीत के अहसास का,
तेरी गमर् बाहों के पाश में
तेरे गेसुओं के सुवास में,
किसी कांपती हुई डाल से
झरे फूल जैसै पलाश का,
वो बूँद था पर यूँ लगा ज्यों बाँध कोई ढह गया,
तेरी आँख भी नम कर गया,

अब क्या कहूँ क्या रह गया।

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