आपने ऐसे निहारा
दिल के कोरे कागजों पर
चित्र सुन्दर खींचकर मैं,
सोचता हूँ आपका है? या कि मेरा? या हमारा?
आपने ऐसे निहारा
आपके
आँचल की उन
नीलाभ सी परछाइयों में
खिल गयी है पसीने की बूँद भी,
जैसे निशा की लटों से हो खेलता को सितारा
आपने ऐसे निहारा
आपकी मुस्कान
मेरी जिन्दगी में
इस तरह से खिल गयी है,
मरुस्थल की किसी बंजर राह में ज्यों फूल प्यारा
आपने ऐसे निहारा
ढालने बैठा था
सब कुछ गीत में,
जो मौन रहकर भी तुम्हारी आँख मुझसे बोलती है,
पर लगा यों शब्द की सीमा परे ज्यों चल रहा हो खेल सारा
आपने ऐसे निहारा
© Kamlesh Pandey 'शजर'
Sunday, March 11, 2007
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1 comment:
आपकी सब कविताएँ पढीं, बहुत अच्छी लगी विषेशकर 'आपने ऎसे निहारा'.
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