गजल कहूँ या रूबाई तुझको
कि मेरे सीने का दर्द जैसे, लफ्ज़ बनकर के ढल गया हो
कि मेरी नजरों का ख्वाब जैसे अश्क बनकर पिघल गया हो
कि तेरी हसरत की आग जलकर के राख में सब बदल गया हो
मैं सोचता हूँ कि है बचा क्या सिवा तुम्हारे ख़याल के अब
मैं सोचता हूँ कि हसरत-ए-दिल
मेरी कहूँ या पराई तुझको
गजल कहूँ या रूबाई तुझको
© Kamlesh Pandey 'शजर'
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