यकीन कम है समन्दरों पे
मैं फिर घरोंदे बना रहा हूँ
पता हैं लहरों के सब इरादे, मैं फिर भी जोखिम उठा रहा हूँ
मैं खारे पानी से खेलता हूँ
हयात-ए-फानी से खेलता हूँ
हबाब बन मौज में सँवरती, मैं उस रवानी से खेलता हूँ
उबर के मैं बार बार डूबा
मैं डूब कर उबरता रहा हूँ
यकीन कम है समन्दरों पे
मैं फिर घरोंदे बना रहा हूँ
पता हैं लहरों के सब इरादे, मैं फिर भी जोखिम उठा रहा हूँ
मैं खारे पानी से खेलता हूँ
हयात-ए-फानी से खेलता हूँ
हबाब बन मौज में सँवरती, मैं उस रवानी से खेलता हूँ
उबर के मैं बार बार डूबा
मैं डूब कर उबरता रहा हूँ
यकीन कम है समन्दरों पे
© Kamlesh Pandey 'शजर'
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