Sunday, March 11, 2007

यकीन कम है समन्दरों पे

यकीन कम है समन्दरों पे

मैं फिर घरोंदे बना रहा हूँ
पता हैं लहरों के सब इरादे, मैं फिर भी जोखिम उठा रहा हूँ

मैं खारे पानी से खेलता हूँ
हयात-ए-फानी से खेलता हूँ
हबाब बन मौज में सँवरती, मैं उस रवानी से खेलता हूँ

उबर के मैं बार बार डूबा
मैं डूब कर उबरता रहा हूँ

यकीन कम है समन्दरों पे


© Kamlesh Pandey 'शजर'

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