Sunday, March 11, 2007

मुझे छू गया झौंका कोई

मुझे छू गया
झौंका कोई
शम्मा की लौ सी
थरथरा गयी हूँ मैं

सिमटने लगी
तनहाइयों की
काली अँधेरी खामोश चादर

मुझे यूँ लगा
ज्यों हो उगा
पूनम का चाँद, बेवक्त ही

ज्यों खनक उठा
कोई भीना साज, बेरब्त ही

तेरे प्यार का आगोश पाकर
थरथरा गयी हूँ मैं

मुझे छू गया
झौंका कोई
शम्मा की लौ सी
थरथरा गयी हूँ मैं


मेरी
कल्पना को
दो पंख दो
इक रात ही
दिल की गिरह को खोल दो
इक बात ही
झूठी सही, मुझे बोल दो

मुझे चूम लो
मेरे जिस्म के
हर रोम को
उन बिजलियों से, छू लो जरा
उन्हीं उंगलियों से
जिनका नरम स्पर्ष पाकर
थरथरा गयी हूँ मैं

मुझे छू गया
झौंका कोई
शम्मा की लौ सी
थरथरा गयी हूँ मैं

1 comment:

Anonymous said...

kasam se bahut hi pyari kavita hai.