मुझे छू गया
झौंका कोई
शम्मा की लौ सी
थरथरा गयी हूँ मैं
सिमटने लगी
तनहाइयों की
काली अँधेरी खामोश चादर
मुझे यूँ लगा
ज्यों हो उगा
पूनम का चाँद, बेवक्त ही
ज्यों खनक उठा
कोई भीना साज, बेरब्त ही
तेरे प्यार का आगोश पाकर
थरथरा गयी हूँ मैं
झौंका कोई
शम्मा की लौ सी
थरथरा गयी हूँ मैं
सिमटने लगी
तनहाइयों की
काली अँधेरी खामोश चादर
मुझे यूँ लगा
ज्यों हो उगा
पूनम का चाँद, बेवक्त ही
ज्यों खनक उठा
कोई भीना साज, बेरब्त ही
तेरे प्यार का आगोश पाकर
थरथरा गयी हूँ मैं
मुझे छू गया
झौंका कोई
शम्मा की लौ सी
थरथरा गयी हूँ मैं
मेरी कल्पना को
दो पंख दो
इक रात ही
दिल की गिरह को खोल दो
इक बात ही
झूठी सही, मुझे बोल दो
मुझे चूम लो
मेरे जिस्म के
हर रोम को
उन बिजलियों से, छू लो जरा
उन्हीं उंगलियों से
जिनका नरम स्पर्ष पाकर
थरथरा गयी हूँ मैं
मुझे छू गया
झौंका कोई
शम्मा की लौ सी
थरथरा गयी हूँ मैं
1 comment:
kasam se bahut hi pyari kavita hai.
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