Sunday, March 11, 2007

रेत पर लिखकर

रेत पर लिखकर
तुम्हारा नाम मैंने उँगलियों से
कहा बढ़ते समन्दर से

"मिटा सकते हो?
मिटा दो!
किन्तु इतना याद रखना
ये महज प्रतिबम्ब है
उन अक्षरों का
जो कि अंकित हैं हृदय में"

समन्दर को भी समझ थी
पास आया
नाम को तेरे भिगाया
और वापस हो लिया

मैंने हथेली से किया महसूस गीले अक्षरों को
रो दिया
© Kamlesh Pandey 'शजर'

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