रेत पर लिखकर
तुम्हारा नाम मैंने उँगलियों से
कहा बढ़ते समन्दर से
"मिटा सकते हो?
मिटा दो!
किन्तु इतना याद रखना
ये महज प्रतिबम्ब है
उन अक्षरों का
जो कि अंकित हैं हृदय में"
समन्दर को भी समझ थी
समन्दर को भी समझ थी
पास आया
नाम को तेरे भिगाया
और वापस हो लिया
मैंने हथेली से किया महसूस गीले अक्षरों को
रो दिया
© Kamlesh Pandey 'शजर'
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