आपकी याद के फिर फूल खिले
शब-ए-तारीक में ज्यों दीप जले
खून के रंग रंगी आज दुआ
इस कदर खार से थे हाथ छिले
वो हैं खामोश तो खामोश है रात
कोई झौंका चले पत्ता तो हिले
दिल कोनों में छुपा रख्खे हैं
आपकी चाह में जो ज़ख़्म मिले
देखिये उनकी नजर का जादू
फिर 'शजर' भूल गया शिकवे गिले
© Kamlesh Pandey 'शजर'
Thursday, May 3, 2007
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