दिल-ए-बेकरार को बेसबब जाने क्यों क़रार सा आ गया
न कहा गया न सुना गया मुझे एतबार सा आ गया
कोई और मंज़िल चुन तो लूँ कोई रास्ता तो दिखाई दे
जिस सिम्त भी मैं रुख़ करूँ लगे कू-ए-यार सा आ गया
तुझे ख्वाब ना तो क्या कहूँ तू आया भी तो इस तरह
सेहरा में भूले से कोई जैसे नौबहार सा आ गया
जैसे ख़ुश्बुओं के ख़त हमारे नाम कोई लिख गया
खिड़की से कल झोंका सुबह एक मुश्कबार सा आ गया
कोई रास्ते, कोई मंज़िलें, कोई हमसफ़र ले चल पड़ा
मेरे हाथ में उड़ता हुआ कोई गुबार सा आ गया
जरा उठ के देखो तो शजर आहट सी आती है मुझे
ये कौन आधी रात को ख़याल-ए-यार सा आ गया
© Kamlesh Pandey 'शजर'
Tuesday, April 24, 2007
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